Friday, 11 February 2011

आशीर्वचन: परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान् राम जी



प्रिय बंधुओ ! प्रकाशपुंज, चैतन्य -जड़ को कभी नहीं प्राप्त होता | मनुष्य का जीवन तभी सार्थक होता है जब वह क्रियाशील होता है | यदि वह निष्क्रिय है तो उसका जीवन जडवत है, उसे वह चैतन्य नहीं प्राप्त होता | मनुष्य बहुत ही देव दुर्लभ शारीर है ; ऐसा सास्त्रो का, महात्माओ का कथन है | हम हर एक प्राणी से जो यहाँ उपस्थित हैं, निवेदन करता हूँ, कि अपने जीवन में जीने कि शैली अख्तियार करे और वही जीवन उसका सार्थक हो सकता है | परमेश्वर धुन्धने से नहीं मिलते |हम ऐसा कर्म करे, अपने इंद्रियों को लोलुपता से वंचित रक्खे, परमेश्वर हमें सदैव धुंध करेंगे और वह हमारे बहुत सन्निकट दिखेंगे | हमारे भीतर छिपे हुए जो देवता हैं- उनकी जो प्रेरणा है, हम अवश्य उसपर ध्यान दे |ध्यान करने से बहुत ही अच्छा है | मनुष्य प्राणी हिन्दू , मुसलमान, ईसाई, ब्राम्हण, झत्त्रिय, शूद्र, वैश्य हो जाता है, वह मनुष्य ;आदमी नहीं बनने लिए तैयार है, मनुष्य नहीं बननेके लिए तैयार है |
जब तक वह मनुष्य नहीं बनता है आदमी नहीं बनता है तब तक उसका सभी कुछ बनना उतना सार्थक नहीं है जितना एक क्रियाशील मनुष्य के जीवन में होता है |

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