Saturday, 7 May 2011

आशीर्वचन



इसमें गुंजाइश नहीं है - गुरु के प्रति अगौरव का भाव रखता हो, धर्म के प्रति अगौरव का भाव रखता हो, सर्वेश्वरी समूह के प्रति अगौरव का भाव रखता हो ; कोई मुडिया साधु या सदस्य गुरु के प्रति गौरव का , धर्म के प्रति गौरव का, किन्तु सर्वेश्वरी समूह के प्रति अगौरव रक्खेगा | यह तीनो में गुरु, धर्म और सर्वेश्वरी समूह में एक के प्रति भी अगौरव का भाव रखता हो तो सभी तीनो धर्म, समूह और गुरु के प्रति भी अगौरव का भाव रक्खेगा | जो अगौरव का भाव रखता है मुडिया या सदस्य, वह उच्छिट ( कहा कर झूठा पत्तल फेका हुआ ) के सद्रश होता है | उससे यह सम्भावना बिलकुल नहीं है की वह हम सभी सवेश्वरी परिवार के लिए गौरव का भाव रक्खेगा | हमें सम्भावना करनी भी नहीं चाहिए |

" पुरुषार्थ ना करने वाला प्राणी ही दरिद्रता को प्राप्त होता है | माँ गुरु के शरण में कोई बता नहीं | आत्मविश्वास ही सफल जीवन की आधारशिला है | सांसारिक भेदभावो के त्याग से ही अमर ज्योति का दर्शन होता है | जीवन अविनाशी है और कर्मफल को भोगना अनिवार्य है | अस्तु, तू सतकर्म-रत रह |"

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